टैक्स चोरी करने वालों की मौज

अजीत द्विवेदी
किसी अज्ञात शायर का शेर है- विसाल ए यार से दूना हुआ इश्क, मर्ज बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की। यही हुआ है भारत में बड़े धूम धड़ाके से आधी रात को संसद बुला कर शुरू किए गए अप्रत्यक्ष कर सुधार के कानून, वस्तु व सेवा कर यानी जीएसटी के साथ। जैसे जैसे कानून पुराना हो रहा है वैसे वैसे टैक्स चोरी भी बढ़ती जा रही है। गौरतलब है कि जिस तरह से आधी रात को आजादी की घोषणा हुई थी उसी तरह जुलाई 2017 में नरेंद्र मोदी सरकार ने आधी रात को संसद बुला कर जीएसटी कानून लागू करने का ऐलान किया था।

इस कानून को अप्रत्यक्ष कर से जुड़ी तमाम गड़बडिय़ों के लिए एकमात्र उपाय के तौर पर प्रस्तुत किया गया। केंद्र ने कितनी ही मेहनत करके सभी राज्यों को इसके लिए तैयार किया कि वे कर वसूलने का अपना अधिकार छोड़ दें और यह काम केंद्र को करने दें। कहा गया कि यह ‘एक देश, एक कर’ की व्यवस्था है लेकिन हकीकत में यह एक देश, अनेक कर की पुरानी व्यवस्था का ही विस्तार है। वह एक अलग मसला है। कारोबारियों को हो रही समस्याएं भी एक बड़ा मसला है। लेकिन अगर सिर्फ टैक्स चोरी की बात करें तो यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि जिस मकसद से इस कानून को लागू किया गया था वह पूरा नहीं हो पा रहा है।

भारत सरकार की संस्था डीजीजीआई यानी डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ जीएसटी इंटेलीजेंस की रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2023-24 में जीएसटी की चोरी दो लाख करोड़ रुपए से ज्यादा हुई है। एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक अगर केंद्रीय जीएसटी में चोरी को जोड़ दें तो वित्त वर्ष 2023-24 की टैक्स चोरी 2.37 लाख करोड़ रुपए पहुंच जाएगी। यानी अगर सरकार साल में 20 लाख करोड़ रुपए का जीएसटी इक_ा करती है तो उसके 12 फीसदी के बराबर टैक्स चोरी होता है! यह आंकड़ा कितना बड़ा है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बिहार जैसे विशाल राज्य का सालाना बजट 2.62 लाख करोड़ का होता है। यानी बिहार के बजट के लगभग बराबर जीएसटी की चोरी हुई है।

भारत सरकार का बजट 40 लाख करोड़ रुपए का है। जीएसटी की चोरी उसके लगभग छह फीसदी के बराबर है। इतनी बड़ी टैक्स चोरी हो रही है और सरकार को पता होने के बावजूद वह कुछ नहीं कर पा रही है! चोरी रोकने की बजाय सरकार इस उधेड़बुन में है कि कैसे कुछ और वसूली बढ़ाई जा सके। तभी जीएसटी को युक्तिसंगत बनाने या रेशनलाइज करने के लिए बने मंत्री समूह की बैठक हुई तो उसमें जो फैसले हुए उनको लेकर बताया गया कि इससे सरकार को 10 हजार करोड़ रुपए का अतिरिक्त टैक्स मिलेगा। यानी सारे उपाय अतिरिक्त टैक्स हासिल करने के ही हो रहे हैं।

ऐसा नहीं है कि जीएसटी की चोरी में सिर्फ निजी या फर्जी कंपनियां शामिल हैं। सरकारी कंपनियां भी टैक्स चोरी कर रहे हैं या छिपा रही हैं। भारतीय जीवन बीमा निगम लिमिटेड जैसी बड़ी कंपनी को पिछले एक साल में टैक्स चोरी के अनेक नोटिस जा चुके हैं। बीमा कंपनियों के अलावा ई कॉमर्स कंपनियां, आईटी सेक्टर की कंपनियां, ऑनलाइन गेमिंग की कंपनियां, पान मसाला और गुटखा, सिगरेट बेचने वाली कंपनियां, सब टैक्स चोरी में शामिल हैं। ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों ने ही एक साल में एक लाख 10 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा टैक्स की चोरी की है।

बैंकिंग, फाइनेंशियल सर्विसेज एंड इश्योरेंस यानी बीएफएसआई भारत का सबसे संगठित सेक्टर है। जीएसटी की चोरी में यह सेक्टर दूसरे स्थान पर है। सोचें, देश का वित्तीय सेक्टर, जो इस समय आईटी के साथ साथ सबसे तेजी से बढ़ता सेक्टर है और जिसके क्लायंट की पूरी सूचना सेक्टर की कंपनियों के पास होती है वहां इतनी बड़ी मात्रा में टैक्स चोरी हो रही है?

इतना बड़ा नेटवर्क खड़ा करने और इतना बड़ा तामझाम करने के बावजूद टैक्स चोरी कैसे हो रही है, यह समझना भी बहुत मुश्किल काम नहीं है। जिस तरह से पुराने सिस्टम में टैक्स चोरी होती थी उसी तरह इस सिस्टम में भी हो रही है। फर्जी इनवॉयस बना कर कंपनियां इनपुट टैक्स क्रेडिट सरकार से वसूल रही हैं। इसके लिए लोगों के आधार कार्ड चुरा कर फर्जी कंपनियां खड़ी की जा रही हैं और उन कंपनियों के नाम पर फर्जी इनवॉयस बनाए जा रहे हैं। डिजिटल और ई कॉमर्स से जुड़ी कंपनियां भारत में रजिस्ट्रेशन नहीं करा रही हैं वे विदेशी रजिस्ट्रेशन पर ही काम कर रही हैं।

इसी तरह ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से मिलने वाली सेवाओं को गलत तरीके से वर्गीकृत किया जा रहा है और उनका टैक्स स्लैब घटा दिया जा रहा है। ऑनलाइन गेमिंग कंपनियां जुए की तरह लॉटरी वाले खेल चला रही हैं लेकिन उनको कौशल आधारित खेल की तरह पेश किया जा रहा है, जिससे सबसे ज्यादा टैक्स की चोरी हो रही है। इस सेक्टर में सबसे ज्यादा एक लाख 10 हजार करोड़ रुपए की टैक्स चोरी हुई है। उसके बाद बीएफएसआई सेक्टर है, जिसमें टैक्स चोरी हुई। इसके अलावा सरकारी टेंडर से मिलने वाले कार्यों में या इलेक्ट्रोनिक सामानों में या सिगरेट, पान, गुटखा, तंबाकू आदि की बिक्री में जम के टैक्स चोरी हो रही है।

सवाल है कि जब सरकार ने जीएसटी का पूरा सिस्टम ऑनलाइन किया और डिजिटल मॉनिटरिंग की व्यवस्था बनाई तो उन सबका क्या मतलब है अगर उनसे टैक्स चोरी नहीं रोकी जा रही है? वित्त वर्ष 2022-23 के मुकाबले 2023-24 में जीएसटी की चोरी दोगुनी हो गई। तो क्या इससे सरकार की नींद नहीं खुलनी चाहिए? लेकिन सरकार क्या कर रही है, वह कारण बताओ नोटिस जारी कर रही है, जिसका कोई असर नहीं हो रहा है। इस साल मार्च में खत्म हुए वित्त वर्ष में 1.64 लाख करोड़ रुपए की टैक्स चोरी के लिए करीब 24 सौ कारण बताओ नोटिस जारी किए गए।

इनके जरिए टैक्स चोरी करने वालों को एकमुश्त स्वैच्छिक टैक्स भुगतान से मामला सेटल करने का प्रस्ताव दिया गया। फिर भी करीब 13 हजार करोड़ रुपए की ही वसूली हो पाई। टैक्स चोरी के काम में शामिल लोगों और लाभार्थियों में से करीब डेढ़ सौ लोगों को गिरफ्तार किया गया लेकिन उसका भी कोई फायदा नहीं हुआ क्योंकि कोई मुकदमा आगे नहीं बढ़ा और बहुत से  लोगों ने ऊपर की अदालतों से कार्रवाई पर रोक लगवा ली। सोचें, क्या कोई और सेक्टर हो सकता है, जिसमें एक साल में दो लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की चोरी हो जाए और सरकार कुछ न कर पाए?

पिछले वित्त वर्ष हर महीने औसतन 1.68 लाख करोड़ रुपए जीएसटी वसूला गया। इसका मतलब है कि सरकार एक महीने में जितना टैक्स वसूलती है उससे बहुत ज्यादा एक साल में चोरी हो जाता है। ऐसे सिस्टम का क्या फायदा? आम आदमी जीएसटी चुका कर परेशान है। उसके ऊपर बेतरह बोझ डाला गया है। अच्छे और सच्चे कारोबारी इस वजह से परेशान हैं कि इस कानून में यह प्रावधान किया गया है कि बिल जेनरेट करते ही यानी किसी से भुगतान के लिए उसको बिल बना कर भेजते ही उस पर लगने वाला जीएसटी जमा करना होता है।
ईमानदार कारोबारी बिल बनाने के साथ ही जीएसटी जमा कर देता है लेकिन इस बात की कोई गारंटी नहीं होती है कि उसको समय से बिल का भुगतान हो जाए। उसका जीएसटी का पैसा महीनों, सालों फंसा रहता है और भुगतान नहीं होता है। सो, एक तरफ आम आदमी और ईमानदारी कारोबारी दोनों परेशान हैं तो दूसरी ओर टैक्स चोरी करने वालों की मौज हो गई है। वे हर साल टैक्स चोरी की रकम दोगुनी करते जा रहे हैं और सरकार का सारा सिस्टम कुछ नहीं कर पा रहा है।

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