भारतीय संविधान में कलात्मकता

भारतीय संविधान में कलात्मकता

गजेंद्र सिंह शेखावत
हमारा भारत देश संस्कृति और ऐतिहासिक विरासत का एक जीता जागता अनुभव है। इसके इतिहास को सरल शब्दों में व्यक्त करना अत्यंत कठिन है। इससे भी अधिक कठिन है पांच हजार से अधिक वर्षों की सभ्यता के इतिहास को एक दस्तावेज़ के रूप में व्यक्त करना, जो देश की स्वतंत्रता के समय एक नए स्वतंत्र हुए राष्ट्र के भाग्य का मार्गदर्शन करने वाला हो। लेकिन आचार्य नंदलाल बोस केवल एक कलाकार नहीं थे और भारत के संविधान पर चित्रण उनके लिये केवल एक और कार्य नहीं था। संविधान में चित्रण के लिए उनकी दृष्टि हड़प्पा सभ्यता के समय से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति के समय तक भारत की यात्रा का वर्णन करती है।

यह सभी चित्रण संविधान के अंतिम पृष्ठ पर सूचीबद्ध हैं और उन्हें बारह ऐतिहासिक काल में वर्गीकृत किया गया है: मोहनजोदड़ो काल, वैदिक काल, महाकाव्य काल, महाजनपद और नंद काल, मौर्य काल, गुप्त काल, मध्यकालीन काल, मुस्लिम काल, ब्रिटिश काल, भारत का स्वतंत्रता आंदोलन, स्वतंत्रता के लिए क्रांतिकारी आंदोलन और प्राकृतिक विशेषताएँ।

संविधान की शुरुआत हमारे राष्ट्रीय प्रतीक के चित्रण से होती है। नंदलाल बोस इस बात को लेकर बहुत स्पष्ट थे कि प्रतीक में शेर बिल्कुल असली शेरों की तरह दिखें, उनकी चाल और चेहरे के हाव-भाव सही हों और आयु के हिसाब से उनमें बदलाव हो। राष्ट्रीय प्रतीक के डिजाइनर दीनानाथ भार्गव, जो उस समय कला भवन में एक युवा छात्र थे, इस कलाकृति को चित्रित करने से पहले शेरों के हाव-भाव, शारीरिक भाषा और तौर-तरीकों का अध्ययन करने के लिए महीनों तक कोलकाता चिडिय़ाघर गए। प्रस्तावना पृष्ठ और कई अन्य पृष्ठों को बेहर राममनोहर सिन्हा ने डिजाइन किया था। नंदलाल बोस ने बिना किसी बदलाव के प्रस्तावना हेतु सिन्हा जी की बनाई कलाकृति का समर्थन किया। इस पृष्ठ पर निचले दाएं कोने में देवनागरी में सिन्हा का संक्षिप्त हस्ताक्षर राम है। संविधान की प्रस्तावना एक हाथ से लिखा हुआ लेख है जो आयताकार बॉर्डर से घिरा हुआ है। बॉर्डर के चार कोनों में चार पशुओं को दर्शाया गया है। दर्शाए गए चार जानवर भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के आधार से लिए गए हैं। बॉर्डर की कलाकृति में कमल की आकृति प्रमुखता से दिखाई देती है।  कमल की आकृति बॉर्डर कलाकृति में प्रमुखता से दिखाई देती है।

संविधान का प्रत्येक भाग एक चित्र से आरंभ होता है और अलग-अलग पृष्ठों पर अलग-अलग बॉर्डर डिज़ाइन दर्शाए गए हैं। कलाकारों के हस्ताक्षर चित्र पर और बॉर्डर के पास दिखाई देते हैं जो इस प्रोजेक्ट में सभी के सहयोग को दर्शाता है। अनेक पृष्ठों पर कई हस्ताक्षर हैं जो बंगाली, हिंदी, तमिल और अंग्रेजी में दिखाई देते हैं। भारत के संविधान के भाग 19 में विविध विषयों से संबंधित एक चित्र है जिसमें नेताजी सैन्य पोशाक में अपने सैनिकों से घिरे हुए सलामी दे रहे हैं। नंदलाल बोस के हस्ताक्षर चित्रण पर दिखाई देते हैं और ए. पेरुमल के हस्ताक्षर पृष्ठ के बाएं निचले कोने पर दिखाई देते हैं। वे कला को लोगों तक ले जाने वाले कलाकार के रूप में प्रसिद्ध हुए। वे शांतिनिकेतन के गाँवों में जाते और संथाल घरों की दीवारों को जानवरों, पक्षियों और पेड़ों वाली प्रकृति की थीम से सजाते। वे शांतिनिकेतन के कला भवन में चार दशकों से अधिक समय तक नंदलाल बोस जैसे महान कलाकारों के साथ रहे और काम किया, उन्हें स्नेह से पेरुमलदा कहा जाता था।

संविधान का भाग 4, जो प्रथम अनुसूची के भाग में राज्यों से संबंधित है, वह ध्यान में बैठे भगवान महावीर की समृद्ध रंगीन चित्र से शुरू होता है, जिसमें वे अपनी आँखें बंद करके और हथेलियाँ एक दूसरे पर टिकाकर बैठे हुए हैं। भगवान महावीर के दोनों ओर एक-एक पेड़ हैं और फ्रेम में एक मोर भी दिखाई दे रहा है जो प्रकृति में सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व को दर्शाता है। यह मूल संविधान के कुछ रंगीन चित्रों में से एक है। रंगीन चित्रों में जमुना सेन और नंदलाल बोस के हस्ताक्षर हैं। इस पृष्ठ पर बॉर्डर डिज़ाइन में राजनीति नामक कलाकार के हस्ताक्षर भी हैं।

भारतीय संविधान का भाग 15 चुनावों पर केंद्रित है। इस पृष्ठ पर दिए गए चित्रों में भारत के दो वीर सपूत छत्रपति शिवाजी महाराज और गुरु गोविंद सिंह को दिखाया गया है। इस पृष्ठ पर दिए गए चित्र धीरेंद्र कृष्ण देब बर्मन द्वारा बनाए गए हैं, जो त्रिपुरा राजघराने के सदस्य थे और रवींद्रनाथ टैगोर और नंदलाल बोस के साथ उनके घनिष्ठ संबंध थे। बॉर्डर डिज़ाइन पर कृपाल सिंह शेखावत के हस्ताक्षर हैं, जो भारत के एक प्रसिद्ध कलाकार और मिट्टी के बर्तन बनाने वाले थे, जिन्हें जयपुर की प्रतिष्ठित ब्लू पॉटरी की कला को पुनर्जीवित करने के लिए जाना जाता है।

शांतिनिकेतन में ललित कला संस्थान कला भवन ने भारत और दुनिया के सभी कोनों से छात्रों और कलाकारों को आकर्षित किया, इस प्रकार विभिन्न प्रभावों को समाहित करते हुए उत्कृष्टता की निरंतर खोज करते हुए एक इकोसिस्टम निर्मित किया और अंत में, एक अनूठी भारतीय शैली और कला निर्मित की। इस पर काम करने वाले कई कलाकारों ने अपने करियर में महान ऊंचाइयों को हासिल किया, लेकिन इस परियोजना के समय शांतिनिकेतन के छात्र और सहयोगी ही थे जो अपने श्रद्धेय ‘मास्टर मोशाय’ नंदलाल बोस के सपने को जीवंत करने के लिए प्रयत्नशील थे।

संविधान में चित्रों की प्रेरणा भारत के विशाल इतिहास, भौतिक परिदृश्य, पौराणिक चित्र और स्वतंत्रता संग्राम में निहित है। भारत के संविधान का भाग 13 ‘भारतीय क्षेत्र में व्यापार, वाणिज्य और उनके परस्पर संबंधो’ से संबंधित है। इस पृष्ठ पर दिया गया चित्रण महाबिलापुरम में स्मारकों के समूह का हिस्सा है जो यूनेस्को द्वारा अंकित विश्व धरोहर स्थल है। ‘गंगा का अवतरण’ एक बड़ी, खुली हवा में बनी चट्टान की नक्काशी वाली मूर्ति है जो स्वर्ग से धरती पर गंगा नदी के उतरने के कथा को पत्थर में दर्शाती है। नंदलाल बोस के हस्ताक्षर चित्र पर दिखाई देते हैं और जमुना सेन का नाम बॉर्डर के बाएं निचले कोने पर दिखाई देता है।

भाग 3 जो मौलिक अधिकारों से संबंधित है, उसमें रामायण का एक दृश्य दिखाया गया है। इस पृष्ठ के बॉर्डर पर जमुना सेन के हस्ताक्षर हैं। भाग 4 जो राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों से संबंधित है, उसमें महाभारत का एक दृश्य दिखाया गया है। बानी पटेल और नंदलाल बोस के नाम दाईं ओर नीचे दिए गए चित्रण पर दिखाई देते हैं और विनायक शिवराम मसोजी का नाम बॉर्डर के बाएं कोने पर दिखाई देता है।

संविधान का भाग 7 ‘पहली अनुसूची के भाग बी में शामिल राज्यों’ से संबंधित है। इस खंड की शुरुआत में दिए गए चित्रण में सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध धर्म के प्रसार को दर्शाया गया है। उन्हें हाथी पर सवार दिखाया गया है, जो सभी तरह के साज-सज्जा से सुसज्जित है और बौद्ध भिक्षुओं से घिरा हुआ है। यह चित्रण अजंता की शैली में है, जिसमें भिक्षुओं को शरीर के ऊपरी हिस्से को बिना वस्त्रों और आभूषणों के साथ दिखाया गया है। यह चित्रण नंदलाल बोस द्वारा किया गया था, जिनका काम अजंता भित्तिचित्रों में पाई जाने वाली कलात्मक परंपराओं से बहुत प्रभावित था। चित्रण के निचले बाएँ भाग पर ए. पेरुमल का नाम भी दिखाई देता है। बॉर्डर डिज़ाइन में ब्योहर राममनोहर सिन्हा के हस्ताक्षर हैं, जिन्होंने प्रस्तावना और कई अन्य पृष्ठों को भी डिज़ाइन किया था। यहाँ उन्होंने हिंदी में राममनोहर के रूप में हस्ताक्षर किए हैं। यह संविधान के उन कुछ पन्नों में से एक है, जिस पर नंदलाल बोस और उनके सबसे वरिष्ठ छात्र ब्योहर राममनोहर सिन्हा दोनों के नाम हैं।

भारत का संविधान इस मायने में अनूठा है कि यह मूल रूप से एक हस्तलिखित दस्तावेज़ था। इसे अंग्रेजी में प्रेम बिहारी रायज़ादा और हिंदी में वसंत के. वैद्य ने सुलेखित किया था। रायज़ादा ने प्रवाहपूर्ण इटैलिक शैली का इस्तेमाल किया और सुलेख की कला अपने दादा से सीखी। संविधान हॉल (जिसे अब कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ़ इंडिया के नाम से जाना जाता है) के एक कमरे में काम करते हुए, उन्होंने छह महीने के दौरान दस्तावेज़ तैयार किया। उन्होंने इसे लिखते समय सैकड़ों पेन निब का इस्तेमाल किया। भारत के संविधान के अंग्रेजी संस्करण के सुलेखक प्रेम बिहारी नारायण रायज़ादा (प्रेम) के हस्ताक्षर दस्तावेज़ के हर पृष्ठ पर दिखाई देते हैं। राष्ट्रीय महत्व की इस परियोजना को शुरू करने के लिए उन्होंने यही एकमात्र अनुरोध किया था।

भारत का संविधान एक मौलिक कला ग्रंथ है जो समय की कसौटी पर खरा उतरा है। भारतीय संविधान में कलात्मकता भारत के बहुस्तरीय इतिहास को दर्शाती है और सामाजिक सांस्कृतिक, पौराणिक, क्षेत्रीय, आध्यात्मिक, भौतिक परिदृश्य तथा अन्य कारकों के प्रति श्रद्धांजलि है जो भारत को एक अद्वितीय और जीवंत अनुभव बनाते हैं।
यह एक ऐसे राष्ट्र की वास्तविकता को दर्शाता है जो अपने प्राचीन अतीत को स्वीकार करता है, विविधता में एकता का उत्सव मनाता है और भविष्य की ओर देखता है।

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