-डॉ. सुभाष गंगवाल
देश में लोकसभा 2024 के लिए 543 सीटों में से प्रथम चरण में लगभग 102 सीटों के लिए मतदान सम्पन्न हो चुका है, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि मतदान का प्रतिशत पूर्व लोकसभा चुनाव 2019 की तुलना में लगभग 6 प्रतिशत कम हुआ है। प्रथम चरण में 64 प्रतिशत मतदान हुआ है, जबकि लोकसभा 2019 में यह प्रतिशत 70 था। राज्यों में त्रिपुरा में सर्वाधिक 80 प्रतिशत मतदान हुआ, जबकि बिहार में सबसे कम 48 प्रतिशत मतदान हुआ है। बहुत से राज्यों में मतदान प्रतिशत 50 प्रतिशत के समक्ष रहा है। राजस्थान में भी प्रथम चरण में लोकसभा चुनाव 2019 की तुलना में लोकसभा चुनाव 2024 में लगभग 6 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। निश्चित ही मताधिकार प्रतिशत का गिरना लोकतंत्र की दृष्टि से चिंता का विषय है। इसके कारणों की जांच व विश्लेषण की आवश्यकता है। यद्यपि यह भी देखना है कि आगामी समय में 6 चरणों में 441 लोकसभा चुनाव में मताधिकार का उपयोग किया जाना है।
देश में 543 लोकसभा सीटों के लिए लगभग 100 करोड़ मतदाता मतदान करेंगे। जिसमें लगभग आधे मतदाता महिलाएं हैं तथा लगभग 60 प्रतिशत मतदान युवा वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो कि देश का भविष्य है। लोकसभा 2014 में 2019 के चुनाव में युवा मतदाता का प्रतिशत बढ़ा था जो कि सरकार बनाने में अधिक मददगार रहा था। लेकिन युवा मतदान के संदर्भ में एक चिंताजनक तथ्य यह आया है कि 18 से 25 वर्ष के युवा मतदाता का मात्र 38 प्रतिशत ने ही लोकसभा 2024 के लिए अपने आप को मतदाता के रूप में रजिस्टर्ड करवाया है। इसका आशय है कि लगभग 62 प्रतिशत मतदाता जो बन सकते हैं उनकी मताधिकार में रुचि ही नहीं है। वह चुनाव के प्रति न सजग, न जागरूक। बिहार, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्टÑ आदि में केवल 25 प्रतिशत या कम ने अपने को मताधिकार के लिए रजिस्टर्ड करवाया है। ऐसे में यह मुद्दा चुनाव आयोग, केंद्रीय राज्य सरकार, राजनीतिक दल व विश्लेषकों के लिए गंभीर चिंतन व विश्लेषण का विषय है कि आखिर क्या कारण रहे हैं कि भारतीय चुनाव आयोग एवं सरकारी मशीनरी एवं तंत्र द्वारा मतदाता तक पहुंचाने के लिए किए गए नवाचारों की बावजूद मतदान प्रतिशत कम क्यों हुआ। देश में चुनाव सुधारों को लेकर गंभीर प्रयास लगभग दो दशक पूर्व चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन द्वारा किए गए थे तथा इसके पश्चात मतदाताओं को चुनाव से जोड़ने के लिए विभिन्न कार्यक्रम लागू किए गए हैं।
देश स्वतंत्र निष्पक्ष एवं पारदर्शी चुनाव करवाने की जिम्मेदारी भारतीय चुनाव आयोग की है। भारतीय चुनाव आयोग मतदान तक पहुंचाने के प्रति अत्यधिक जागरुक है। विभिन्न कार्यक्रम चलाए जाते हैं तथा आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी तकनीक एवं एप्स का भी सहारा लिया जा रहा है। चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत को बढ़ाने के लिए अनेक नवाचार लागू किए हैं। जिसके अंतर्गत मतदान का समय 2 घंटे बढ़ा दिया है। पहले 2 घंटे के लिए मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए पहली बार बने मतदाता, नव विवाहित वर-वधु आदि को हर बूथ पर 50 सर्टिफिकेट जारी किए गए हैं। सरकारी कर्मचारियों के लिए जो कि चुनाव की ड्यूटी देते हैं डाक के स्थान पर सर्विस वोट डालने की व्यवस्था ड्यूटी स्थल पर ही किए जाने की व्यवस्था की गई है। 85 वर्ष या अधिक उम्र के मतदाताओं के लिए घर पर ही वोटिंग की सीधा प्रदान की गई है। सीनियर सिटीजन को वोट डालने में प्राथमिकता की व्यवस्था की गई है। चुनाव पूर्व स्विप कार्यक्रम चलाया जाता है जिसमें स्कूलों के छात्रों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, नगर निगम आदि को जोड़ा जाता है। लेकिन लगता है कि यह प्रयास पर्याप्त नहीं है, राजनीतिक दलों मतदाताओं में राजनीतिक विश्लेषण का यह मानना है कि यह चुनाव कांटे की टक्कर का नहीं है। मतदाता का मानना है कि मोदी फैक्टर काम करेगा तो सरकार तो मोदी के नेतृत्व की बनेगी। आशा है कि यह चुनाव टक्कर का न होकर एक तरफा है तो मतदान करने से क्या फायदा है।
स्थानीय नेताओं ने मतदाताओं को मतदान स्थल तक पहुंचने में कोई उत्साह नहीं दिखाया। दूर-दराज एवं ग्रामीण क्षेत्रों में मतदान स्थल तक पहुंचना आसान नहीं होता है तथा यातायात व्यवस्था एक समस्या है, लेकिन निजी एवं सरकारी वाहन के चुनाव कार्य में व्यस्त हो गए तथा कार्यकर्ता एवं पार्टी द्वारा मतदान स्थल तक लाने व ले जाने में रुचि नहीं दिखाई। देश में शादी, लगातार सरकारी छुट्टियां, गर्मी का मौसम भी मतदान प्रतिशत में कमी का कारण बताया जा रहा है। लेकिन सवाल यह है कि युवा मतदाता मताधिकार को लेकर उदासीन क्यों हुआ है, जबकि सोशल मीडिया पर तो वह सक्रिय रहता है, लेकिन मतदान स्थल पर वोट डालने की प्रति रुचि नहीं रखता है। आज का युवा रोजगार को लेकर अत्यधिक निराश है। राजनीतिक दलों द्वारा युवाओं को लेकर चुनावी घोषणाएं तो बहुत की जाती है लोक लुभावन वायदे किए जाते हैं लेकिन युवा मतदाताओं को निराशा ही हाथ लगी है।